जल संरक्षण :सभी की जिम्मेदारी
बढ़ते जल संकट से जुड़ी समस्या की गंभीरता को समझा तो गहन विचार मंथन किया। आखिर यह समस्या क्यों उत्पन्न हुई ? इससे निबटने का उत्तरदायित्व क्या सिर्फ सरकार का है ? सुधार सदैव स्वयं से शुरू होता है ,कथन का अनुसरण करते हुए क्या अपनी नैतिक जिम्मेदारी निभाने का यह उचित समय है ? सोचा, कहीं इस समस्या की जड़ में थोड़ा बहुत ही सही मेरा हाथ तो नहीं है ?
मन अपराध बोध से ग्रसित हुआ! उसी क्षण से आत्म मूल्यांकन का निर्णय लेकर घर में पानी के इस्तेमाल पर नजर रखी। मैंने देखा, पानी का उपयोग तो आवश्यकता के अनुरूप ही था | हां, उसके उपयोग में समझ और सावधानी बरती जाए तो रोज काम आने वाले पानी में से 20 से 40 लीटर पानी रोज बचाया जा सकता था | तुरंत R.O. के अपशिष्ट जल (waste water) के नीचे और A.C. के नीचे बाल्टी रखी और उस पानी को साफ – सफाई में इस्तेमाल किया फिर फल तथा सब्जियां धोने के बाद बचे पानी को नाली में न बहा कर गमलों में डाला। इस प्रकार मैंने रोज की तरह आवश्यकता के अनुरूप पानी का इस्तेमाल किया किंतु उसमें से 20 से 40 लीटर पानी बचाया। भीतर कहीं खुशी छलक उठी! अब लगा, यहीं तक नहीं रुकना। आगे बढ़ना है। सोचा, तो भीतर से उत्तर मिला- मैं एक अध्यापिका हूं। मेरे पास तो स्कूल के रूप में ऐसा मंच है, जहां मैं बच्चों के मन में जल संरक्षण के भाव जगा कर भविष्य को सुरक्षित कर सकती हूं। मैं क्यों सोचूं कि सब करें? मैं यह सोचूं कि मैं क्या करूं! मैं क्लास 10th B की क्लास टीचर थी। अगले ही दिन मैंने अपनी क्लास में जल संकट पर बच्चों को विस्तार से बताया। किशोर चेहरों पर चिंता की लकीरें दिखी। उनसे पानी बचाने के अपने अनुभव को बांटा और समझाया कि यदि मैं ऐसा कर सकती हूं तो आप भी कर सकते हैं ।मैं चाहती हूं कि मेरी कक्षा का हर विद्यार्थी अपने घर में इस्तेमाल होने वाले पानी का समझदारी और सावधानी से इस्तेमाल करके रोज एक बाल्टी(20 लीटर) पानी बचाए ।यदि ऐसा हो पाता है तो हम सब रोज की 40 से 50 बाल्टी (800 से 1000 लीटर) पानी बचा पाएंगे। सोचो, 1 महीने में कितना पानी बचेगा और वर्ष भर में कितना? अब आज घर जाकर सभी अपने परिवार में राय करें कि आप किस प्रकार पानी बचाएंगे और कल अपने सुझाव पूरी कक्षा में बांटे ।अगले दिन सभी विद्यार्थियों ने सुझाव दिया। मुझे प्रसन्नता हुई जब उन्होंने मुझसे कहा कि आपके दोनों सुझावों पर हमने घर जाते ही अमल किया और रात तक एक बाल्टी(20 लीटर) पानी बचा लिया।अपनी कक्षा में सफल प्रयोग के बाद तय किया- यहीं नहीं रुकना।मैंने उन सभी कक्षाओं में जहां मैं पढ़ाती थी, बच्चों को जल संकट से अवगत कराकर प्रत्येक बच्चे से घर में 20 लीटर पानी रोज बचाने का आग्रह किया।मैंने कक्षाओं में बच्चों की सामूहिक चर्चा करवाई। परिवारिक चर्चा का सुझाव दिया। बच्चों से जल संरक्षण पर मॉडल बनाने, पोस्टर बनाने, संवाद लिखने, नारा लेखन, अनुच्छेद लेखन को कहा और इस कार्य में बच्चों का मार्गदर्शन और उनकी सहायता भी की। परिणाम अत्यंत सुखद था। सुझाव इस प्रकार थे-
1 मेहमान आने पर आधा गिलास पानी देकर ‘कटिंग पानी’ मुहिम का हिस्सा बनें।
2 वर्षा जल संचयन (Rainwater Harvesting System) हर घर अपनाए। जब तक आप इस सिस्टम को नहीं अपनाते तब तक वर्षा आने पर आंगन में बाल्टी रखकर जल का संचयन करें और उसका उपयोग करें।
3 फल और सब्जियां धोने के बाद बचे पानी को गमलों में डाला जाए।
4 वाशिंग मशीन से निकलने वाले पानी से आंगन धोया जाए।
5 ब्रश करते समय नल खुला ना छोड़ा जाए।
6 शावर की बजाय बाल्टी का इस्तेमाल नहाते समय किया जाए।
7 R.O.और A.C. से निकलने वाले पानी को बगीचे में दिया जाए|
8 स्कूल में नल खुले ना छोड़े और पानी को व्यर्थ ना बहाएं।
9 वाटर बोतल से बचे पानी को घर आकर फेंके नहीं
10 राह चलते सार्वजनिक स्थल में नल खुला मिले तो रुक कर बंद करें।
11 आस-पड़ोस को भी इस मुहिम का हिस्सा बनाएं ।
प्रसन्नता का विषय यह था कि बच्चों ने इन सुझावों पर अमल करके रोज 20 लीटर पानी बचाना आरंभ किया।
मेरी कक्षा ने तो एक ‘शपथ- पत्रिका’ तैयार कर डाली जिसमें हर बच्चा अपना नाम लिखकर शपथ ले रहा था कि वह जीवनभर जल संरक्षण के प्रति अपना कर्तव्य निभाते हुए एक बाल्टी पानी रोज बचाएगा। कुछ बच्चों ने वर्षा के जल – संचयन पर वर्किंग मॉडल बनाया जिससे हमें यह पता चला कि ‘रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम’ महंगा नहीं है |आवश्यकता सिर्फ लोगों को जागृत करने की है।कहते हैं, यदि किसी कार्य को 21 दिन तक कर लें तो उसकी आदत हो जाती हैं। बच्चों में इस आदत के विकसित हो जाने के बाद मैंने अपने स्कूल के प्रिंसिपल सिस्टर वीणा ड्सूजा से जल संरक्षण की अपनी कोशिश बांटी। उन्होंने मेरी सराहना की और सुझाव दिया- क्यों न इस मुहिम से पूरे स्कूल को ही जोड़ दिया जाए? माननीय अनिल स्वरूप जी के शब्दों में कहूं तो प्रिंसिपल साहिबा की सराहना मेरे लिए ‘किक’ थी। मैंने अपनी कक्षा से इस विषय पर विचार विमर्श किया और हमने दो कार्य करने का निर्णय लिया-
1. कक्षाओं में जाकर जल संरक्षण का महत्व समझाया और वर्षा के जल संरक्षण हेतु बनाया गया वर्किंग मॉडल बच्चों को दिखाया
2. प्रिंसिपल साहिबा की अनुमति से पूरे स्कूल के लिए असेंबली तैयार की, जहां बढ़ते जल संकट और जल संरक्षण के उपाय विस्तार में बताए गए।
पूरे स्कूल से आग्रह किया गया कि प्रत्येक बच्चा एक बाल्टी पानी अपने परिवार की सहायता से रोज बचाने का प्रयास करें ।हम यह प्रयास कर चुके हैं और इसे करना कठिन नहीं है। आवश्यकता सिर्फ सावधानी बरतने की है। हमारी प्रिंसिपल महोदया ने वर्षा के जल संचयन पर बने वर्किंग मॉडल को लेकर बच्चों की तारीफ की जिस से प्रेरित होकर कुछ और बच्चों ने भी मॉडल बनाएं।स्कूल का स्टाफ, सफाई कर्मचारी, माली आदि सभी जल संरक्षण के लिए प्रेरित हुए |
इस प्रकार मैं जल संरक्षण के मार्ग पर अकेले चली थी किंतु बच्चों के सहयोग ने इसे ‘काफिला’ बना दिया और प्रिंसिपल सिस्टर वीणा ड्सूजा के मार्गदर्शन ने तो पूरे स्कूल को इस मुहिम से जोड़कर ‘सेंट जोसेफ कॉन्वेंट स्कूल’ बठिंडा (पंजाब) को एक ‘रोल मॉडल’ बनाया। कितना अच्छा हो यदि हमारी इस मुहिम में हर स्कूल जुड़ जाए क्योंकि भविष्य के लिए जल की संभाल हम सभी की जिम्मेदारी है |कारण- पानी बचाया जा सकता है पर बनाया नहीं जा सकता।
डॉ० रंजना
सेंट जोसेफ कॉन्वेंट स्कूल बठिंडा (पंजाब)